प्राइमरी स्कूल से लखनऊ विवि का सफर!

75 बरस में लगातार बढ़ीं सुविधाएं, आज देश के जाने-माने विवि में शामिल है लखनऊ विश्वविद्यालय

156 साल पहले अमीनाबाद के खयालीगंज में दो कमरों में शुरू हुआ प्राथमिक विद्यालय आज देश के जाने-माने लखनऊ विश्वविद्यालय में तब्दील हो चुका है। इस विवि में पिछले साल ही अपने सौ बरस का सफर मुकम्मल किया है। आजादी के लिए बगावत का बिगुल भी यहां से फूंका गया था। यहां के छात्रों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ आंदोलन चलाया तो गोलियों का सामना भी किया। फिर आजादी के बाद पिछले 75 बरस में इसका स्वरूप तेजी से बढ़ा कभी इसका दायरा दो कमरों का था, जो आज 318 एकड़ का है।

सफर की कहानी

18 अगस्त 1862 में अवध के तालुकेदारों में एक उच्च शैक्षणिक संस्थान की स्थापना पर एकराय बनी। इसका नाम लॉर्ड कैनिंग की याद में रखा गया और कैसरबाग स्थित उनके निवास में संस्थान शुरू करने पर सहमति बनी। फिरखालीगंज में चल रहे दो कमरे के स्कूल को कैसरबाग शिफ्ट कर इसे कैनिंग स्कूल नाम दिया गया।

1 मई 1864 को 200 विद्यार्थियों के साथ यह स्कूल अस्तित्व में आया। दो साल बाद इसे कैसरबाग के लाल बारादरी में शिफ्ट कर हाई स्कूल की पढ़ाई शुरू करवाई गई और नाम पड़ा- कैनिंग कॉलेज बाद में विद्यार्थियों की तादाद बढ़ी तो इसे कैसरबाग के परीखाना में शिफ्ट किया गया।

साल 1878 में यह कॉलेज बादशाहबाग में शिफ्ट किया गया यह कॉलेज साल 1857 तक कोलकाता विवि से संबद्ध था। फिर इलाहाबाद विवि से संबद्ध किया गया। फिर 25 नवंबर 1920 को लखनऊ विवि वजूद में आया, जिसकी नींव दान, चंदे और आपसी सहयोग से पड़ी थी। इसका पहला सत्र जुलाई 1921 1 से शुरू हुआ|

1940 में बना था छात्रसंघ भवन और टैगोर पुस्तकालय एलयू का छात्रसंघ भवन और टैगौर पुस्तकालय आजादी से सात साल पहले साल 1940 में बनकर तैयार हुआ। इस पुस्तकालय में करीब पांच लाख किताबें हैं। इसका नक्शा मशहूर आर्किटेक्ट ग्रिफिन ने तैयार किया। उनके दुनिया से रुखसत होने के बाद नर्लीकर ने इसे पूरा किया। रवींद्रनाथ टैगोर भी लविवि में कई बार आए। वहीं, छात्रसंघ ने आजादी के आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई।

News Source: NBT HINDI NEWS

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